Special Report: कोरोना पर लगातार चूकती दिल्ली सरकार

Special Report:  कोरोना पर लगातार चूकती दिल्ली सरकार

नरजिस हुसैन

कोरोना के खिलाफ जंग में दिल्ली शुरूआत से ही काफी अच्छा कर रही थी। केन्द्र सरकार के 31 मार्च तक पहले लॉकडाउन को दिल्ली पर भी लागू किया गया। हालांकि, 9 मार्च तक दिल्ली में कोरोना पॉजिटिव सिर्फ तीन मामले थे तभी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विशेषज्ञों की एक टास्क फोर्स भी बना ली थी जो राज्य सरकार को कोरोना से लड़ने में सलाह दे। दिल्ली में सभी डीटीसी बसों, मेट्रो और अस्पतालों को लगातार डिसइंफेक्ट करने के आदेश भी दिए गए लेकिन, कुछ ही वक्त हुए थे कि कोरोना से निपटने पर इस टास्क फोर्स की सलाहों का क्या हुआ किसी को मालूम नहीं और फिर दिल्ली में जो हुआ या जो हो रहा है उसे हम सभी देख रहे हैं।

यह इस आलेख का पहला भाग है और यह आलेख आगे जारी है...)

लॉकडाउन दो, तीन और चार में भी दिल्ली में कोरोना के मरीजों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा था बावजूद इसके कि राज्य सरकार दिल्ली को अनलॉक करने से पहले कुछ पुख्ता और वाजिब फैसले लेती केन्द्र सरकार ने 8 जून को राज्य के सभी धार्मिक स्थलों, सिनेमाघरों और मॉल या ऑफिसों को खुलने के आदेश दे दिए। लेकिन इससे कुछ पहले ही 7 जून को कोरोना के बढ़ते मामलों के अंदेशे से दिल्ली सरकार ने सभी प्राइवेट अस्पतालों और राज्य सरकार के अधीन आने वाले सभी सरकारी अस्पतालों को सिर्फ और सिर्फ दिल्ली के जनता के लिए सील कर दिया और इसके साथ ही चौथे लॉकडाउन खुलते ही दिल्ली ने पड़ोसी राज्यों से कोरोना के इलाज के लिए आने वालों के लिए बार्डर सील कर दिए।

हालांकि, सरकार का कहना है कि उनके इस फैसले को 7.5 लाख लोगों का साथ था और 90 प्रतिशत जनता राज्य सरकार से यही चाहती थी। मुख्यमंत्री के विशेषज्ञ पैनल की भी यही राय थी कि अगर दिल्ली के अस्पतालों में बाहर से आने वाले लोगों का इलाज होगा तो दिल्ली के अस्पतालों के सभी बेड तीन दिनों में ही भर जाएंगे। इनका मानना था कि 30 जून तक दिल्ली की जनता को 15,000 बेड और 15 जुलाई तक 42,000 बेड की जरूरत पड़ेगी। और फिर इस तरह दिल्ली सरकार के सभी सरकारी अस्पताल में 10,000 बेड और प्राइवेट अस्पतालों के भी कुछ बेड दिल्ली की कोविड-19 प्रभावित जनता के लिए सुरक्षित कर दिए गए। सरकार का अब कहना है कि जुलाई आखिर तक दिल्ली में कोरोना के 5.5 लाख मरीज होने की उम्मीद है।

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अब किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री से यह उम्मीद की जाती है कि वह भारतीय संविधान का पालन करे। और इसी के नाते यही उम्मीद दिल्ली के मुख्यमंत्री से भी की गई क्योंकि भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 के तहत भारत के नागरिक को किसी भी राज्य में भारतीय सीमा के अंदर कहीं भी अपना इलाज कराने का अधिकार है। कोई भी राज्य यह कहकर अस्पताल का दरवाजा बंद नहीं कर सकती कि वहां सिर्फ उसके नागरिकों का ही इलाज हो सकता है। इसी आधार पर मुख्यमंत्री के इस फैसले को दिल्ली के लेफ्टिनंट गर्वनर अनिल बैजल ने खारिज कर दिया।

लेफ्टिनेंट गर्वनर ने 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट में उस वक्त के मुख्य जस्टिस वी. कामेश्वर राव के एक फैसले को आधार बनाते हुए यह कदम उठाया। 2018 में दिल्ली के गुरू तेग बहादुर अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर के एक नोटिस को रद्द करते हुए यह फैसला सुनाया था कि संविधान का आर्टिकल 21 हर भारतीय को यह अधिकार देता है कि वह देश के किसी भी सरकारी अस्पताल में इलाज की सुविधाएं हासिल करे। अस्पताल ने नॉन-दिल्ली के मरीजों को कुछ सुविधाएं देने के लिए मना तो किया ही था उनके लिए नीले रंग के ओपीडी कार्ड भी अलग से बनवाए थे। 

यह पहली बड़ी गलती थी जो दिल्ली सरकार ने की इसके बाद कोरोना को संभालने में अपनी लापरवाही पर से ध्यान हटाने के लिए दोबारा 5 जून को मुख्यमंत्री ने एक फैसला फिर दिल्ली की जनता पर थोपा। अब उन्होंने कहा कि जो असिम्टोमैटिक (लक्षण दिखाई न देने वाले) लोग हैं वे कोरोना की टेस्टिंग से दूर रहे। इसकी एक वजह उन्होंने यह बताई कि इस फैसले से बुजुर्ग और लक्षण वाले मरीजों के इलाज में तेजी आएगी। यानी यह कि दिल्ली में कोरोना का टेस्ट अब लक्षण वाले लोगों, बुजुर्गो और को-मोर्बिडिटी लोगों का ही होगा। इसी बीच केन्द्र सरकार के अधीन राम मनोहर लोहिया अस्पताल में जहां कोरोना टेस्ट अब तक 24 घंटे सातों दिन हो रहा था अब उसका समय सुबह 9 बजे से शाम को 5 बजे तक तय कर दिया गया और इसका कारण दिल्ली सरकार का बड़े पैमाने पर टेस्ट न करने का फैसला बताया गया। यह दूसरी बड़ी भूल दिल्ली सरकार ने की जिसका खामियाजा दिल्ली की जनता को उठाना पड़ रहा है।

इस तरह पिछले एक हफ्ते में दिल्ली में कोरोना टेस्टिंग का ग्राफ गिरने लगा। मई के आखिरी हफ्ते में जहां एक दिन में 7,500 कोरोना टेस्ट हो रहे थे वहीं यह घटकर जून के पहले हफ्ते में 3,700 हो गए हैं। 9 जून को दिल्ली में कोरोना के 1,366 नए मामले दर्ज किए गए जबकि मई के आखिरी हपफ्ते में कुल 1,500 नए मामले दर्ज हुए थे। हालांकि, लेफ्टिनेंट गर्वनर के आदेश के बाद राज्य सरकार को आईसीएमआर प्रोटोकॉल मानने को कहा गया जिसके तहत राज्य भर में टेस्टिंग को दोनों तरह के मरीजों एसिम्टोमैटिक और सिम्टोमैटिक पर तेज कर दिया गया।

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आईसीएमआऱ की बेवसाइट के मुताबिक 9 जून तक पूरे देश में कोरोना के कुल 1,45,216 सैंपल ही इकटठे किए गए हैं। आईसीएमआर ने देशभर की कुल 590 सरकारी लैब्स और 233 प्राइवेट लैब्स को कोरोना के तीन तरह से किए जाने वाले टेस्ट करने की मंजूरी दे दी थी। दिल्ली सरकार ने आईसीएमआर के तहत टेस्टिंग न करने वाली छह प्राइवेट लैब्स को नोटिस भी जारी किए थे। राज्य में कुल 42 पाथ लैब आईसीएमआर के तहत हैं जिसमें 36 ही काम कर रही है और छह को पहले ही राज्य सरकारी ने नोटिस दे दिया था। अब इसका मतलब क्या यह लगाना सही होगा कि इन लैब्स में टेस्टिंग से अस्पतालों में टेस्टिंग का अतिरिक्त बोझ कम हो जाएगा तो सफदर जंग और एम्स के कुछ बड़े डॉक्टरो का यही मानना है। इसके नुकसान ही नुकसान है लेकिन, सरकार का फैसला बड़ा है। सरकार का फैसला आज सब पर भारी पड़ रहा है।

 

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